आचार्य श्रीराम शर्मा की सूक्तियाँ
>> 18 अगस्त, 2010
आचार्य श्रीराम शर्मा की सूक्तियाँ
(1) किसी को आत्म-विश्वास जगाने वाला प्रोत्साहन देना ही सर्वोत्तम उपहार है।
(2) दुनिया में आलस्य को पोषण देने जैसा दूसरा भयंकर पाप नहीं है।
(3) सज्जनता ऐसी विधा है जो वचन से तो कम; किन्तु व्यवहार से अधिक परखी जाती है।
(4) अच्छाइयों का एक-एक तिनका चुन-चुनकर जीवन भवन का निर्माण होता है,पर बुराई का एक हल्का झोंका ही उसे मिटा डालने के लिए पर्याप्त होता है।
(5) परमात्मा की सृष्टि का हर व्यक्ति समान है। चाहे उसका रंग वर्ण, कुल और गोत्र कुछ भी क्यों न हो
(6) मनुष्य जन्म सरल है, पर मनुष्यता कठिन प्रयत्न करके कमानी पड़ती है।
(7) साधना का अर्थ है-कठिनाइयों से संघर्ष करते हुए भी सत्प्रयास जारी रखना।
(8) सज्जनों की कोई भी साधना कठिनाइयों में से होकर निकलने पर ही पूर्ण होती है।00268
8 टिप्पणियाँ:
प्रात: आचार्य जी की सुक्तियां नये चिंतन को जागृत कर गयी, धन्यवाद बड़े भाई.
सुन्दर पोस्ट, छत्तीसगढ मीडिया क्लब में आपका स्वागत है.
सुक्तियाँ जी्वन दर्शन का निचोड़ होती है,
इनसे मार्ग दर्शन मिलता है।
अच्छी पोस्ट
आभार
मैं परेशान हूँ--बोलो, बोलो, कौन है वो--
टर्निंग पॉइंट--ब्लाग4वार्ता पर आपकी पोस्ट
उपन्यास लेखन और केश कर्तन साथ-साथ-
मिलिए एक उपन्यासकार से
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...आध्यात्म वर्षा के लिए आभार.
प्रेरक,अनुकरणीय, पवित्र वाणी...
नमन !!!
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