देवउठनी यानी छोटी दिवाली
>> 17 नवंबर, 2010

उत्तिष्ठोत्तिष्ठगोविन्द त्यजनिद्रांजगत्पते।
त्वयिसुप्तेजगन्नाथ जगत् सुप्तमिदंभवेत्॥
हिरण्याक्षप्राणघातिन्त्रैलोक्येमङ्गलम्कुरु॥
उत्तिष्ठोत्तिष्ठवाराह दंष्ट्रोद्धृतवसुन्धरे।
किसानों की गन्ने की फसल भी तैयार है ,आज के दिन गन्ने की पूजा करके उसका उपभोग किया जाता है ; नए ज़माने के लोग इस परिपाटी को तोड़ चुकें है . देश में आज के दिन को छोटी दिवाली के रूप में भी मनातें है , कहने का तात्पर्य है कि आज भी पटाखों ,फुलझड़ियों एवं मिठाइयों का दौर चलेगा .
आप सबको देवउठनी के पावन पर्व पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
8 टिप्पणियाँ:
aap ko bhi gada gada badhi ho
देश की हालत देख कर भी अब तक सो रहे बड़े-बड़े देवताओं को जगाना होगा .तभी सार्थक होगी देव-उठनी एकादशी .बहुत-बहुत शुभकामनाएं .
आप सभी को देवोत्थिनी एकादशी की हार्दिक शुभकामनायें। वैसे सृष्टि के रचियता, जगत के पालन हार कहां सोने वाले, यह मानव ही है जो उनकी जाग्रत अवस्था को, जब तक सुख समृद्धि व वैभव से परिपूर्ण रहता है, देखने का प्रयास ही नही करता। सुंदर जानकारी। आभार्……
आज सचमुच देवताओं को जगाने का समय आ गया है, मन के भीतर बैठे देवताओं को।
... haardik shubhakaamanaayen !
देव उठनी ग्यारह के संदर्भ में बढ़िया जानकारी दी है .. .. आज के दिन से शुभ मांगलिक कार्यक्रमों की शुरुआत हो जाती है ... आभार
अवसर विशेष पर हार्दिक शुभकामनाएं ...
Aapko bhi badhai ... Sorry for coming little late
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